Friday, June 15, 2012

महिलाओं को कमजोर बनाए रखने का षडयंत्र


आधी आबादी की उपेक्षा से पिछड़ता समाज

भारत में समय-समय पर महिलाओं की दशा पर चिंता जताई जाती रही है। महिलाओं के सशक्तिकरण और इसके लिए उन्हें आरक्षण देने पर आधा-अधूरा ही सही लेकिन प्रयास होते रहे हैं। बावजूद इसके यदि देश में महिलाओं की स्थिति सुधर नहीं पा रही है तो इसके लिए हमारा समाज ही सबसे बड़ा गुनहगार है। आज भी महिलाओं के प्रति पुरुषों की सोच नहीं बदली है। महिलाओं के साथ अन्याय, अत्याचार, उत्पीड़न, यौन शोषण, सामाजिक भेदभाव और लैंगिक पूर्वाग्रह जैसे कई त्याज्य और निंदनीय घटनाओं और वारदातों पर पुरुषप्रधान समाज का उपेक्षा और संवेदनहीनता भरा आचार-व्यवहार ही ऐसी विसंगतियों को बरकरार रहने और उन्हें बढ़ावा देने में सहायक साबित हो रहा है। हाल ही में एक विदेशी सर्वेक्षण संस्था की ओर से कई देशों में महिलाओं की स्थिति की शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और हिंसा जैसे कई विषयों को लेकर तुलना की गई है। थॉम्सन रॉयटर्स फाउंडेशन का यह सर्वेक्षण 19 विकसित और विकासशील देशों में किया गया जिनमें भारत, मैक्सिको, इंडोनेशिया, ब्राजील, सऊदी अरब जैसे देश शामिल हैं। सबसे आश्चर्यजनक और निराशाजनक तथ्य यह कि भारत में महिलाओं की स्थिति को सऊदी अरब जैसे देश से भी खराब बताया गया है जहां महिलाओं को गाड़ी चलाने और मत डालने जैसे बुनियादी अधिकार तक हासिल नहीं हैं। सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में महिलाओं का दर्जा दौलत और उनकी सामाजिक स्थिति पर निर्भर करता है। 19 देशों की सूची में भारत सबसे अंतिम पायदान पर है। इसके लिए बाल विवाह, दहेज, घरेलू हिंसा और कन्या भ्रूण हत्या जैसे कारण गिनाए गए हैं। हालांकि सात वर्ष पहले बने घरेलू हिंसा कानून की सराहना की गई है लेकिन लिंग के आधार पर हिंसा अभी भी हो रही है। विशेष रूप से अल्प आय वाले परिवारों में ऐसी हिंसा अधिक होती है। सर्वेक्षण के मुताबिक, भारत में ऐसी बहुत सारी महिलाएं हैं जो सुशिक्षित और पेशेवर हैं और उन्हें हर तरह की आजादी और पश्चिमी जीवन शैली हासिल है। एक महिला प्रधानमंत्री रह चुकी हैं और अभी देश की राष्ट्रपति एक महिला हैं, मगर ये तथ्य गांवों में महिलाओं की स्थिति से कहीं से भी मेल नहीं खाते। दिल्ली और इसके आसपास आए दिन महिलाओं के राह चलते उठा लिए जाने और चलती गाड़ी में सामूहिक बलात्कार होने की खबरें आती रहती हैं। देह व्यापार के लिए महिलाओं की तस्करी और शोषण की खबरें छपती रहती हैं। कई मामलों में महिलाओं के खिलाफ हिंसा को समाज में स्वीकार्य भी समझा जाता है। इसमें एक सरकारी अध्ययन का उल्लेख किया गया है जिसमें 51 प्रतिशत पुरुषों और 54 प्रतिशत महिलाओं ने पत्नियों की पिटाई को सही ठहराया था।
जाहिर है भारत में महिलाओं की दशा यदि मध्यवर्गीय समाज जैसी होती जा रही है तो इसके लिए हमारा समाज ही सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। यह नहीं भूलें कि महिलाओं की दशा सुधारने के लिए सबसे पहले उन्हें समाज में बराबरी का दर्जा दिलाना होगा। परिवार के स्तर पर उनको महत्व देना होगा। रोजी-रोजगार तथा नौकरी के क्षेत्र में उन्हें पहले आरक्षण देकर आर्थिक तौर पर सुदृढ करना होगा। अर्थवाद और भौतिकतावादी इस युग में आर्थिक तौर पर मजबूत बनाकर ही महिलाओं को समाज में ऊपर उठाया जा सकता है।
महिलाओं को कमजोर बनाए रखने का षडयंत्र चल रहा है। उन्हें खुलकर जीने की आजादी नहीं है। घर, परिवार तथा समाज में बंधक की तरह जीवन गुजारने को मजबूर हैं। सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों और विषयों पर घर और समाज में लिए जाने वाले फैसलों में महिला समाज की कोई भूमिका नहीं होती। न ही उनसे राय लेने की कोई व्यवस्था है। तमाम सामाजिक प्रतिबंधों के प्रचलन और परंपराओं को कायम रहने को देखते हुए ऐसा कहना गलत नहीं है कि महिलाएं हरेक कदम पर बंधनों और बाधाओं से घिरी हैं और उन्हें व्यक्तिगत आजादी दिला पाने में हमारा समाज नाकाम रहा है। इसके लिए सामाजिक सुधार की नई लड़ाई और जनजागरूकता के माध्यम से समाज सुधार की पहल करनी होगी। आधी आबादी की उपेक्षा कर समग्र विकास का कोई लक्ष्य प्राप्त कर पाना नामुमकिन होगा।

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