Thursday, May 31, 2012

इतनी जल्दबाजी में क्यों हैं मायावती?



उ त्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार को सत्तासीन हुए अभी दो महीने का समय ही बीता है और सत्ताच्युत हुई बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती काफी परेशान दिख रही हैं। पहले तो सपा की जीत को लोकतांत्रिक तरीके से स्वीकारने के बजाय मायावती ने हार के बाद अपने पहले संबोधन में जनता को ही खरी-खोटी सुना दी थी और अब वह अखिलेश सरकार का रिपोर्ट कार्ड लेकर मैदान में उतर आई हैं। यहां तक कि रिपोर्ट कार्ड के बहाने वह केवल सत्तारूढ़ सपा की ही आलोचना नहीं कर रही हैं बल्कि भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस को भी निशाना बना रही हैं। अभी दो दिन पहले ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मायावती सरकार के कार्यकाल के दौरान 40,000 करोड़ रुपये से अधिक के कई घोटालों का ब्यौरा उजागर किया था। पार्कों के निर्माण कार्य में वित्तीय अनियमितताएं उजागर हुई हैं। अखिलेश यादव का कहना है कि घोटालों की जांच कराई जा रही है और यदि पूर्व मुख्यमंत्री मायावती को शामिल पाया गया तो उन्हें भी जेल भेजा जाएगा। राष्टÑीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) घोटाला तो पहले से ही जगजाहिर था। इस घोटाले ने कई स्वास्थ्य अधिकारियों की जानें ले ली और एक तत्कालीन मंत्री बाबूराव कुशवाहा अभी जेल में हैं। भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने भी कहा है कि इतने बड़े घोटाले बिना मुख्यमंत्री की जानकारी या मिलीभगत के नहीं हो सकते हैं। सवाल उठता है कि कहीं इसी से उपजी बौखलाहट का प्रदर्शन तो नहीं है मायावती का यह हमला। यूपी में निकट भविष्य में स्थानीय निकाय चुनाव होने हैं और शायद यह भी एक वजह हो सकती है।
मायावती का कहना है कि सपा के दो महीने के शासन काल में 800 हत्या, 270 बलात्कार के मामले, 256 अपहरण, 720 लूट के मामले और 245 डकैती की घटनाएं हो चुकी हैं। अपराधियों को अखिलेश सरकार का संरक्षण मिला हुआ है। यह भी गलत नहीं है कि राज्य में लोग कानून-व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति, समाजवादी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के तानाशाही व्यवहारों और प्रदेश में गुंडाराज कायम होने की बातें करने लगे हैं।
उत्तर प्रदेश देश की सर्वाधिक आबादी वाला और बड़े भूभाग में फैला राज्य है। अखिलेश यादव यूपी के सबसे युवा मुख्यमंत्री हैं। उन्हें अभी शासन चलाने के लिए काफी-कुछ सीखना पड़ रहा है। उनके पिता और सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव तथा पार्टी के कई वरिष्ठ नेता उन्हें काफी कुछ सहयोग कर रहे हैं। लेकिन किसी भी हालत मेंअपराधियों को खुली छूट नहीं दी जा सकती है चाहे वह सत्ताधारी पार्टी का नेता-कार्यकर्ता ही क्यों न हो? वरना आम जनमानस में समाजवादी पार्टी की पुरानी सरकार के कार्यकाल की गुण्डागर्दी की छवि उभरते देर नहीं लगेगी।
नई दृष्टि और नई सोच की बदौलत अगर उत्तर प्रदेश के लोगों के समग्र विकास की दिशा में प्राथमिकताएं तय करके योजनाओं का निर्माण और उनका सही क्रियान्वयन सुनिश्चित करने का जज्बा दिखाया जा रहा है तो यह कोई गलत दिशा नहीं है। अखिलेश ने मायावती सरकार की 26 ऐसी योजनाओं को बंद करने का फैसला किया है जिनसे 4861.72 करोड़ रुपये की बचत होगी और इसे नई योजनाओं पर खर्च किया जाएगा। यह सही है कि सपा को बहुमत मिलने के पीछे राज्य में बेरोजगारी, किसानों और बुनकरों की समस्याओं और अल्पसंख्यक आरक्षण जैसे मामलों पर लुभावने वायदे रहे। अखिलेश के समक्ष अपने चुनावी वायदों को पूरा करने की चुनौती है। राज्य में शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, सड़क, बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएं दूरदराज के गांवों तक पहुंचाना होगा।  विकास से जुड़ी योजनाएं तय करनी है और उनके लिए धन आवंटित करना है। बहरहाल किसी भी सरकार का सही तरीके से आकलन इतनी कम अवधि में करना जल्दबाजी होगी।

No comments:

Post a Comment